Tuesday, July 26, 2016

"सब मिलकर ही भारत कहलाते हैं"।

"सब मिलकर ही भारत कहलाते हैं"।

अमन, बचपन से ही ख़ुद को किसी शहर, गाँव या राज्य से ज़्यादा, ख़ुद को भारतीय कहलाना पसंद करता था। बचपन में वैसे भी किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है की वो किस शहर, गाँव या राज्य से है, बस माता-पिता का प्यार, भाई-बहन और दोस्तों का साथ ही मायने रखता है। हालाँकि माता-पिता, नाम के बाद पता या जगह से ही इंसान की पहचान होती है मगर जैसे-जैसे इंसान बड़ा होता है वैसे-वैसे इंसान को दुनिया और दुनियादारी समझ आने लगती है। अमन भी इन सब बातों को समझने लगा था। उसके कई दोस्त, शिक्षक-शिक्षिका दूसरे शहर और कई तो अलग-अलग राज्य से भी थे। उनके बीच जब कभी भी पढ़ाई या खेल के अलावा कोई बात होती थी तो सभी अपने-अपने जगह की विशेषता बताते और पूछते कि बड़ा होकर कौन क्या बनेगा। डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, वक़ील जवाब में यही सब होते थे। अमन लड़ाकू विमान चालक(फ़ाईटर पायलट) बनना चाहता था, देश-भक्ति का जज़्बा और रफ़्तार से प्यार, सबसे बड़ी वजह थी इस पसंद के पीछे। मगर अमन एन.डी.ए. की परीक्षा पास(उत्तीर्ण) न कर सका जिस में पास कर के ही वो फ़ाईटर पायलट बन सकता था।
फिर अमन अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दूसरे राज्य गया, मगर वहाँ के कई लोग अपने राज्य को श्रेष्ठ बताते और अमन के राज्य और उसके राज्य के लोगों का मज़ाक़ उड़ाते। अमन जवाब में अपने राज्य की अहमियत और गुण उनको समझाता और साथ ही कई दूसरे राज्यों की विशेषता भी बताता, मगर वे लोग उसकी बात अनसुना कर देते। अमन इन सब बातों को सुनता, उनको जवाब भी देता मगर दुखी होता था ये सोचकर की अपने ही देश में उसे ये समझाना पड़ता है की सभी राज्य बराबर महत्व रखते हैं और "सब मिलकर ही भारत कहलाते हैं" इन सब के बाद तो अमन ख़ुद को भारतीय कहलाना ज़्यादा पसंद करने लगा, क्योंकि अमन के दिलोदिमाग़ में ये आ गया था कि अगर वो भी अपने राज्य को बेहतर बताने में लगा रहेगा तो किसी को कुछ हासिल तो होगा नहीं बल्कि एक दूसरे के प्रति नफ़रत ज़रूर बढ़ा देगा।
लिहाज़ा वो अपनी पढ़ाई पूरी कर एक कंप्यूटर कम्पनी में बतौर प्रबंधक(मैनेजर) काम करने लगा। एक बार अमन के पास भारतीय फ़ौज(इंडियन आर्मी) से कंप्यूटर की माँग आयी। अमन उनकी माँग समझने के लिए फ़ौज के उस युनिट(विभाग) में सुबह क़रीब 11 बजे पहुँच गया, जहाँ कंप्यूटर की ज़रूरत थी। अमन वहाँ पहले कर्नल वीर से मिला जिन्होंने अमन को बुलाया था फिर कर्नल वीर ने मेजर दीप और सूबेदार ओम को भी बुला लिया और फिर वे सब अमन से उसके कम्पनी और कम्पनी के उत्पाद(प्रोडक्ट) के बारे में समझें और अपनी ज़रूरत अमन को समझाने लगें। अमन उनकी ज़रूरत को समझ, उनके लिए अपनी कम्पनी की सबसे अच्छे प्रोडक्ट का डिमौन्स्ट्रेशन(प्रदर्शन) किया। जबकि डिमौन्स्ट्रेशन करना अमन का काम नहीं था। असल में अमन जितने भी अधिकारी से मिला सभी ने अमन को सम्मान भी दिया और अमन को वहाँ अपनापन भी मिला तो उसने ख़ुद ही डिमौन्स्ट्रेशन कर के दिखा दिया। सूबेदार ओम तो अमन को इज़्ज़त से सर बुला रहे थे। इन सब में क़रीब 2-3 घंटे बीत गये तब कर्नल वीर ने सूबेदार ओम को बुलाया और अमन के लिए दोपहर के खाने का बंदोबस्त करने को कहा। सूबेदार ओम, अमन के पास आयें और बोले- सर चलिए पहले भोजन कर लेते हैं। फिर अमन को सूबेदार ओम उनके कैंटीन ले गयें और वहाँ अमन ने देखा सब अपनी-अपनी थाली लिए ख़ुद खाना लेकर खा रहे थे जैसे बुफे पार्टी में होता है। सूबेदार ओम ने एक टेबल-कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुये अमन से कहा- सर आप यहाँ बैठो मैं अभी आता हूँ। अमन उस कुर्सी पे बैठ गया मगर उसने देखा कि सूबेदार ओम एक हवलदार से एक थाली लगाने को कहे और एक थाली वो ख़ुद लगाने लगे फिर दोनों थाली लेकर अमन की तरफ़ आने लगे। अमन को ये अटपटा लगा और वो उठ के सूबेदार ओम के पास जाकर उनसे एक थाली ली और कहा- आप लोग वैसे भी देश की बहुत सेवा करते हैं, मुझे मेरी थाली कम से कम ख़ुद लेने दीजिए। फिर कई और जवान भी अमन और सूबेदार ओम के पास आकर बैठ कर खाने लगे और आपस में बातें करने लगें। खाना खाकर अमन कर्नल वीर से मिला तो उन्होंने अमन को उसके कम्पनी के प्रोडक्ट को लगाने का आर्डर दे दिया। अमन दो दिन बाद एक इंजीनियर को साथ लेकर कंप्यूटर लगाने पहुँचा, हालाँकि आज अमन की ज़रूरत नहीं थी मगर कर्नल वीर और सूबेदार ओम चाहते थे कि अमन भी साथ रहे और शायद अमन का फ़ौज के प्रति बचपन से लगाव के कारण कंप्यूटर लगाते वक़्त वो इंजीनियर को लेकर पहुँच गया। जब कंप्यूटर लगाया जा रहा था तब वहाँ दो हवलदार, एक इंजीनियर, अमन, सूबेदार ओम और एक सूबेदार विवेक मौजूद थे तभी वहाँ एक और सूबेदार आलोक आयें और बोलें- ये सिविलयंस कंप्यूटर लगाने आयें है क्या? सूबेदार आलोक की बात सुन अमन को ऐसा लगा जैसे फिर से कोई अपने को श्रेष्ठ बताना और जताना चाह रहा हो। अमन सूबेदार आलोक की तरफ़ देखा पर बिना जवाब दिये अपने इंजीनियर को काम बताने लगा ही था कि सूबेदार ओम ने कहा- आलोक साहब जब आप भी फ़ौज से वापस जाओगे तब आप भी एक सिविलयन ही हो जाओगे। सूबेदार आलोक कुछ कहे बिना वहाँ से चले गयें मगर अमन सूबेदार ओम की तरफ़ देखा तो सूबेदार ओम ने कहा ऐसे लोग भूल जाते हैं कि वे तो फ़ौज में हैं पर उनके परिवार वाले तो सिविलयन ही है। सूबेदार ओम की बातें सुन अमन की आँखों में सूबेदार ओम के लिए गर्व और सम्मान था।
इन सब के एक साल बाद समाचार बना हुआ था कि फ़ौज अपनी शक्ति का ग़लत या अनुचित उपयोग कर रही है। कई बुद्धिजीवी तो ये तक कह रहे थे कि फ़ौज वाले सीमा रेखा पर बलात्कार करते हैं। ये सब सुन-पढ़ कर अमन को उन बुद्धिजीवियों से सवाल करने की इच्छा हुई जो शायद कभी सीमा के पास तक नहीं गये, किसी फ़ौजी से कभी मिले नहीं, जो शायद ये सब बोलकर किसी राजनीति का भाग बनना चाहते थे या राजनीति करना चाहते थे और इन सब बातों के समर्थकों से भी कि जब फ़ौज इतनी घटिया और क्रूर काम कर रही है तो देश की सीमा की रक्षा कौन कर रहा है? सीमा के पास रह रहे लोग किसके भरोसे चैन की नींद सोते है? सभी अपनी-अपनी राजनीति या फ़ायदे के लिए पूरे फ़ौज को कैसे ग़लत बोल सकते हैं? फ़ौज अगर कोई सख़्त क़दम लेती भी है तो किसके लिए? क्या माता-पिता अपने बच्चों को सज़ा नहीं देते अगर बच्चा कोई ग़लती करें तो? इसका जवाब शायद बुद्धिजीवी ये देंगे कि सज़ा का मतलब ये नहीं की मार ही दिया जाये और फिर वही बुद्धिजीवी भारत की महान चलचित्र(फ़िल्म) मदर इंडिया देखकर कहेंगे की वैसा बेटा हो तो वैसी ही माँ होनी चाहिए। बुद्धिजीवी जो अपनी संगठन(पार्टी) बनाकर सुबह-शाम दूसरे पार्टी को गाली देते रहते हैं, उनके लिए कुछ मुद्दा नहीं तो यही मुद्दा सही। इन्हीं सब से अमन दुखी हो गया और फिर अपने दोस्त राकेश की लिखी कविता पढ़ने लगा-

कभी घर में, तो कभी सरहद पर.।
कभी अपनों पे, तो कभी गैरों पर.।
जोर बताना पड़ता है, हथियार उठाना पड़ता है..।।

खामोशी को जब कमजोरी समझे सब,
तब दहाड़ लगाना पड़ता है.।
शान्ति स्थापित करने को कभी,
प्रचंड रूप दिखाना पड़ता है..।।

गर्व है मुझे उन लोगों पे,
जिन्होनें देश के आवाम का दर्द सुना.।
गर्व है मुझे उन लोगों पे,
जिन्होनें देश सेवा का काम चुना..।।

आभारी हूँ उन देश भक्‍तों का,
जिन्होनें दुश्मनों के इरादों को नाकाम किया.।
कृतज्ञ हूँ उन शहीदों का,
जिन्होनें कर्तव्य के लिये जान तक कुर्बान किया..।।

अफसोस है ऐसे लोगों से,
जिनको याद दिलाना पड़ता है.।
खेद है ऐसे इंसानों से,
जिन्हें इंसानियत सिखाना पड़ता है..।।©RRKS।।

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